नज़राना इश्क़ का (भाग : 08)
अगली सुबह,
यह सुबह भी हर रोज की तरह ही बिलकुल सामान्य थी, वातावरण में चिड़ियों के चहकने का स्वर गूंज रहा था। उस कमरे की खिड़की आधी खुली हुई थी, एक पर टेबल पर रखा अलार्म लगातार बजे जा रहा था मानो वह उसे जगाने की जिम्मेदारी लिए बैठा हुआ हो, जब थोड़ी देर तक बजने के बाद भी नहीं रुका तो चादर के नीचे से एक हाथ बाहर आया, और तकिया उठाते हुए अपना पूरा जोर लगाकर उस पे मारा, बेचारा अलार्म टेबल में फिक्स होने के कारण शहीद होने से बच गया। फिर उसने अपने चेहरे से चादर हटाया, और उठते हुए एक हाथ से अलार्म बंद कर दूसरे हाथ से अपने चेहरे पर आई लटे सुलझाकर पीछे करने लगीं, बादलों के पीछे से चुपके से निकलता हुआ सूरज खिड़की के रस्ते चोरी चुपके उसको देखने लगा। सूरज की रोशनी पड़ते ही उसका चेहरा यूं खिल गया मानों चांद सा चमक उठा हो, वो जल्दी से उठी, पैरों में स्लीपर डाले और हाथ में ब्रश लेकर किचन की ओर बढ़ गई। वहां उसने गैस चूल्हा जलाकर पानी गरम होने को रख दिया।
"यार! सुबह को इतनी जल्दी हो जाने की जल्दी रहती है, कम से कम एक आध दिन तो सो लेती मैं कभी चैन से!" वाश बेसिन पर मुंह धोते हुए वह बोली। "तू भी ना फरी, अब अपने बचपना से बाहर निकल और जल्दी भाग ले पानी गरम हो गया होगा।" अपने आप से बतियाते हुए वह तेजी से किचन की ओर भागी।
"चलो अब थोड़ी चाय बना लेते हैं, फिर नहा धोकर पिया जाएगा! वैसे भी यहां मुझे सुनने देखने वाला कोई नहीं, मैं अपनी बकबक कर सकती हूं। वैसे भी मुझे मेरे अलावा कोई मिलता नहीं जिससे मैं अपनी बाते कह सकूं..! कॉलेज… कॉलेज का तो नाम न लेना ही बेहतर है। काश मम्मा! तू मेरे पास होती, फिर देखती तेरी गुड़िया ने पहले एग्जाम में ही कितना अच्छा स्कोर किया है, तू तो देख ही रही होगी ना..! मैं खुद ही खुद से इसलिए बतिया लेती हूं क्योंकि मुझे तेरे हिस्से की भी बातें करनी होती है ना खुद से..!" फरी जितना चहक रही थी उसका चेहरा उतना धुंधला पड़ता गया मगर थोड़ी ही देर में फिर वो मुस्कान आ गई। वह तेजी से नहाने के लिए चली गई।
कमरे में एक ओर दीवार पर तस्वीर टंगी हुई थी जो बिलकुल फरी के जैसे दिख रही थी मगर तस्वीर में साड़ी पहने मांग में सिंदूर लगाए, माथे पे बिंदी, मानों किसी देवी की मूरत हो। यह तस्वीर लगाई गई थी जिससे फरी उठते ही सबसे पहले इसे देख सके। ये उसकी मां थी, जिससे आज भी फरी अपनी खूब सारी बातें करना चाहती थी मगर वो जानती थी कि एक बार चले जाने वाला इंसान कभी नहीं लौटता, इसलिए कभी कभी खुद से ही अपने मम्मी का हिस्सा भी बात कर लिया करती थी, खुद को समझा, मना लिया करती थी।
"ये मत समझना मां कि मुझे खुद पे प्राउड हो रहा है, बल्कि मुझे तो अभी तक ये अजीब लग रहा है कि लोगों को मेरे फर्स्ट आने की खुशी है या उस लड़की के फर्स्ट ना आने का, मुझे तो समझ नहीं आ रहा की वो कैसे रिएक्ट करेगी, मुझे क्या समझेगी!" फरी ने गैस चूल्हे पर चाय चढ़ाते हुए कहा। "अरे जाने दे ना फरी, इतना भी क्या सोचना! तूने मेहनत किया उसका फल मिला, लोगों के बारे में सोचकर कब तक दुखी होती रहेगी तू?" फरी ने खुद ही खुद को समझाते हुए सवाल किया।
थोड़ी देर बाद वह टैरेस पर डायरी के पन्ने पलट रही थी, गर्म चाय से उठती हुई भाप अब भी आकाश को छू जाने को लालायित थी। थोड़ी देर बाद फरी ने डायरी दीवार से सटे टेबल पर एक साइड रखा और दोनों हाथों से कप पकड़ते हुए चाय की चुस्कियां लेने लगी।
"काश! दुनिया चाय की तरह होती.. रंग खूब सारे भले न होते, पर दुनिया खूबसूरत बहुत होती!" अचानक ही फरी के होंठो पर मुस्कान खिल गई, वह सबकुछ भुलाकर चाय पीने में लग गई।
◆◆◆◆◆
"अबे उठ जा घोंचू! बोल रहा था फाइटिंग करेगा, अभी तक कुंभकर्ण को ट्रेनिंग देने में व्यस्त है। देख मैं नहा के भी आ गई। अब उठ भी जाओ जानी दुश्मन!" जाह्नवी अपने बाल झटकारते हुए चिल्लाई। बाल भीगे हुए होने के कारण निमय की आँखें खुल गई वह घूर घूरकर जाह्नवी की ओर देखने लगा।
"मैंने कुछ नहीं किया, मैंने कुछ नहीं किया!" कहते हुए जाह्नवी उनके छोटे से बगीचे की ओर भागी।
"वही रुक, बताता हूं मैं तुझे! जहां हीरोइन बनने का होता है बनती नहीं है और मुझे मासूम पर जुल्म करती फिरती है। लाज शर्म हया नहीं आती तुम्हें!" निमय उसके पीछे भागते हुए मुंह बिचकाकर बोला।
"ओए मिस्टर! देखो शर्मा जरूर हूं मगर शरमाने का ठेका मैंने नहीं ले रखा, और रही बात हीरोइन बनने की तो वो खुद डर के भाग गए, वरना उनका पंगा किस्से था उन्हें पता नहीं था, उनके छठी का दूध याद न दिला देती तो मेरा नाम भी जाह्नवी नहीं... हां!।" जाह्नवी ने इठलाते हुए मुंह बनाकर कहा।
"खुद को तो याद नहीं होगा, बड़ी आई दूसरों को याद दिलाने!" जाह्नवी ने धीरे से चपत लगाने की कोशिश की मगर निमय ने उसकी कोहनी पर कोहनी मारकर उसका हाथ मोड़ दिया।
"उई मम्मी... ई! दर्द होता है बे घोंचू! तुझे तो याद होगा ना? जिस दिन तेरा उसी दिन मेरा। तेरा कॉमन सेंस घोड़े के साथ घास चरने गया है क्या?" जाह्नवी ने दूसरे हाथ से खुद को छुड़ाने की कोशिश की।
"नहीं! पर तेरा सेंस तुझे छोड़कर किसी गधे के साथ घूमने में व्यस्त जरूर होगा!" निमय ने जाह्नवी के अटैक को रोकते हुए उसके दूसरे हाथ को भी मोड़कर उसे झुका दिया।
"ओए गिराना मत बे! नहा धोकर आई हूं मैं!" जाह्नवी चिल्लाती हुई बोली, जिसे सुनकर निमय ने उसे छोड़ दिया। "मैं जानती हूं तू बदला ले रहा है कुत्ते! एक दिन मैं तेरी इससे भी बुरी हालत बनाकर छोडूंगी, एक भाभी तो लाई ना जा रही तुझसे, हाथ मोड़ दिया कितना दर्द होता है अ.. ई.. आह!" कहते हुए जाह्नवी अपने हाथ सहलाते हुए किचन की ओर भागी जहां उसके तैयार होकर पापा नाश्ता करने बैठ रहे थे। निमय थोड़ी देर टहलने के बाद नहाने चला गया।
◆◆◆◆◆
आज निमय रोज की तरह लेट लतीफ न होकर समय से पहुंचा था। यह देखकर हर कोई हैरान था, स्पेशली विक्रम को यह बिल्कुल हज़म नहीं हो रहा था। निमय लंबे कदमों से कॉलेज गेट को पार कर ग्राउंड में जा पहुंचा। उसे आता देख विक्रम भी उसकी ओर बढ़ चला।
"क्या बात है भाई! अपना ही रिकॉर्ड ब्रेक कर दिया तुमने, वो भी कल का! कहीं ऐसा न हो कि कल मैं कॉलेज आऊं और तुम अंदर बैठे हुए मिलों।" विक्रम उसकी ओर आते हुए तंज कसते हुए बोला।
"ऐसा कुछ नहीं है विक! बस आज जानी ने जगा दिया।" निमय ने अपना सिर खुजाते हुए कहा।
"वाह रे मेरे शेर! मेरे वाशिंग पाउडर निरमा जैसे चमचमाते महापुरुष! जब तुम्हें पता है कि तुम्हें झूठ बोलना नहीं आता तो बोलते क्यों हो?" विक्रम ने मुंह बिचकाते हुए तंज कसा। "उस बेचारी पर इल्जाम न लगाओ, ऐसा कौन सा दिन है जब वो तुम्हें ना जगाती हो, आज नींद कैसे भाग गई वो तो बता?"
"हे मेरे बैल बुद्धि धारक अतीव बुद्धिमान मित्र! किसे बेचारी कह रहे हो अभी तुम्हें पता नहीं है, कभी ढंग से उस बेचारी से पाला पड़ जाए ना तो यकीन मानो फिर तुम बेचारी शब्द की परिभाषा ही बदल दोगे।" निमय ग्राउंड में फैली हरी घास पर टांग पसार कर बैठते हुए बोला।
"वो तो ठीक है निम्मी! मगर ये वो चक्कर तो नहीं लग रहा, कहीं सच में इश्क वाला चक्कर तो नहीं है तेरा?" विक्रम ने उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा।
"अबे विक्की! थम जा क्यों आज बुलेट ट्रेन हुआ जा रहा है, ऐसा कुछ भी नहीं है ब्रो..!" कहते हुए निमय की नजर गेट की तरफ गई! हल्के नीले सुनहले सूट में फरी किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। निमय एक बार जो उसकी तरफ देखा तो फिर देखता ही रह गया। उसके होंठो पर हल्की सी मुस्कान आ गई, वह दुनिया जहां से बेखबर एकटक फरी को देखता ही जा रहा था।
'जो तुझे देखूं तो ना जाने कैसा सुरूर चढ़ता है
ना चाहकर भी तुझे देखने का ये कुसूर करता है
ऐसे लगता है जैसे मिल गई है तुझमें जन्नत मुझे
बताओ भला कोई ऐसे आसमां से क्यू उतरता है।' निमय के दिल की धड़कन तेजी से बढ़ने लगी थी, वह अपनी हकीकत के दुनिया से कोसों दूर चला गया था।
"ओए क्या हुआ निम्मी?" विक्रम ने चुटकी बजाते हुए उसकी तंद्रा भंग करने की कोशिश की, मगर निमय जैसे दूसरी दुनिया में खोया हुआ था।
"ओए आजकल क्या हो रहा बे तुझे, जब भी ये आती है तेरा एंटीना उसकी ओर घूम जाता है, अबे हम भी हैं दुनिया में..!" विक्रम ने उसे झिकझोर दिया।
"अं….!" निमय की तंद्रा भंग हुई वह आँख मलते हुए उठा।
"और जनाब! क्या है ये? हमको तो लग रहा है दिल विल का मामला है ये? कहो क्या इश्क हो गया है?" विक्रम ने उसे छेड़ते हुए कहा। कुछ सोचकर निमय की आंखों में पानी भर आया, जिसे वह जल्दी से पूछते हुए आगे बढ़ गया।
"यार पूछ रहा हूं मैं कुछ!" विक्रम ने मुंह बनाते हुए कहा।
"ऐसा कुछ नहीं है भाई! चल क्लास चलते हैं!" कहते हुए निमय तेजी से आगे बढ़ गया। मगर आज उसकी चाल ढाल बदली हुई नजर आ रही थी, जिस निमय का सिर कभी नहीं झुकता था, उसका सिर आज झुका हुआ था। जो हमेशा एक विशेष चाल से ही चला करता था आज उसकी चाल में असमानता थी, जो निमय हर वक्त बक बक करता रहता था आज वह एकदम शांत था। कुछ तो असर था, मगर किसका..! आंसू बाहर आने को बेकरार थे मगर वो इतने मजबूर थे कि बाहर भी नहीं आ सकते थे। इस वक्त निमय के मन में हजारों सवाल, हज़ारों बातें उमड़ घुमडकर उठ रही थी, जिसका जवाब ढूंढने में वो लाचार सा नजर आ रहा था। किसी तरह अपने होंठो पर जबरदस्ती की मुस्कान सजाए वह अपनी क्लास में चला गया।
क्रमशः….
shweta soni
29-Jul-2022 11:36 PM
Nice 👍
Reply
🤫
26-Feb-2022 02:34 PM
ऐसा क्या याद आया निमय को….??
Reply
मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 09:27 PM
Aage ke bhaag me pata chalega.. thank you so much ❤️
Reply
Pamela
03-Feb-2022 03:02 PM
Very nicely written
Reply
मनोज कुमार "MJ"
26-Feb-2022 09:27 PM
Thank you
Reply